गंगा का वर्णन, संकर्षण देव17
गंगा का वर्णन, शंकर कृत संकर्षण देव की स्तुति।
भगवान अनादि और अनंत है।जिसका जन्म और मृत्यु काल से सीमित है, वह भला उनको कैसे जान सकता है। ब्रह्माजी, निवृतिपरायण -सनकादि तथा प्रवृत्तिपरायण-मरीचि आदि भी बहुत पीछे भगवानसे ही उत्पन्न हुए हैं। जिस समय भगवान सबको समेट कर सो जाते हैं,उस समय ऐसा कोई साधन नहीं रह जाता, जिससे उनके साथ ही सोया हुआ जीव उनको जान सके। क्योंकि उस समय न तो आकाशआदि-स्थूलजगत रहता है और न तो महतत्वआदि-सूक्ष्मजगत। इन दोनोंसे बने हुए शरीरऔरउनकेनिमित्त-क्षणमुहूर्त आदिकाल के अंग भी नहीं रहते। उस समय कुछ भी नहीं रहता। यह
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