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१४-भवाटवीका स्पष्टीकरण १५-भरतके वंशका वर्णन  १६-भुवनकोशका वर्णन  १७-गंगाजीका विवरण और भगवान् शंकरकृत संकर्षणदेवकी स्तुति  १८-भिन्न-भिन्न वर्षोंका वर्णन  १९-किम्पुरुष और भारतवर्षका वर्णन  २०-अन्य छः द्वीपों तथा लोकालोक-पर्वतका वर्णन  २१-सूर्यके रथ और उसकी गतिका वर्णन  २२-भिन्न-भिन्न ग्रहोंकी स्थिति और गतिका वर्णन  २३-शिशुमारचक्रका वर्णन

अन्य छः द्वीपों और लोकालोक/20

 अन्य छः द्वीपों और लोकालोक पर्वत का वर्णन

किम पुरुष और भारत वर्ष का वर्णन 19

भिन्न भिन्न वर्षो का वर्णन 18

गंगा का वर्णन, संकर्षण देव17

 गंगा का वर्णन, शंकर कृत संकर्षण देव की स्तुति।

भु वन कोश का वर्णन 16

भ वा ट वी स्पष्टीकरण 14

स्पष्टी करण   पुरुष बहुतसा कष्टउठाकर जो धन कमाता है,उसका उपयोग धर्ममें होना चाहिए; वही धर्म यदि साक्षात भगवान परम-पुरुषकी आराधनाके रूपमें होता है तो उसे परलोकमें निःश्रेयशका हेतु बतलाया गया है। किंतु जिस मनुष्य का बुद्धि रूप सारथी विवेक हीन होता है और मन वश में नहीं होता, उसके उस धर्म उपयोगी धन को यह मनसहित छः इंद्रियां देखना, स्पर्श करना, सुनना, स्वाद लेना, सूंघना, संकल्प-विकल्प करना और निश्चय करना-इन वृत्तियों के द्वारा गृहस्थोचित विषय भोगों में फंसा कर उसी प्रकार लूट लेती है,जिस प्रकार बेईमान मुखिया का अनुगमन करने वाले एवम् असावधान बंजारों के दल का धन चोर डाकू लूट ले जाते हैं।2 यह ही नहीं, इस संसार वन में रहने वाले उसके कुटुंबी भी-जो नाम से तो स्त्री-पुत्र आदि कहे जाते हैं, किंतु कर्म जिनके साक्षात भेड़ियों और गीदड़ो के समान होते हैं-उस अर्थ लोलुप कुटुंबीके धनको उसकी इच्छा नहीं रहनेपर भी उसके देखते-देखते इस प्रकार छीन ले जाते हैं,जैसे भेड़िए गडरियोंसे सुरक्षित भेड़ोंको उठा ले जाते हैं।3।

भरत वंश का वर्णन 15

5/21 सूर्य का रथ और गति

5/22 ग्रह और गति

5/23 शिशुमार चक्र का वर्णन

 सदा जागते रहने वाले अव्यक्त गति भगवान काल के द्वारा जो ग्रह नक्षत्र आदि ज्योतिरगण निरंतर घुमाया जाते हैं, भगवान ने ध्रुव लोककोही उन सब के आधार स्तंभ रूप से नियुक्त किया हैं।अतः यह एक ही स्थान में रहकर सदा प्रकाशित होता है।2

पूर्वा फाल्गुनी

*भगवान अनादि और अनंत है।* जिसका जन्म और मृत्यु काल से सीमित है, वह भला उनको कैसे जान सकता है।ब्रह्माजी, निवृतिपरायण -सनकादि तथा प्रवृत्तिपरायण-मरीचि आदि भी बहुत पीछे भगवानसे ही उत्पन्न हुए हैं। जिस समय भगवान सबको समेट कर सो जाते हैं,उस समय ऐसा कोई साधन नहीं रह जाता, जिससे उनके साथ ही सोया हुआ जीव उनको जान सके।क्योंकि उस समय न तो  आकाशआदि-स्थूलजगत रहता है और न तो महतत्वआदि-सूक्ष्मजगत। इन दोनोंसेबनेहुए शरीरऔरउनकेनिमित्त क्षणमुहूर्तआदि कालकेअंग भी नहीं रहते। उस समय कुछ भी नहीं रहता। यहां तक कि शास्त्र भी भगवान में ही समा जाते हैं। *ऐसी अवस्था में भगवान को जानने की चेष्टा न करके भगवान का भजन करना ही सर्वोत्तम मार्गहै।*